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बीसवी शताब्दी के शुरुआत के वर्षो में जब भारत वर्ष की हिन्दू जातिया अंग्रेजो के खिलाफ संगठित हो रही थी एक जाति का संगठन कही नजर नहीं आता था, ऐसे सामजिक बिखराव के समय मैं किरार जाति को संगठित करने का प्रयास सेम्रिताला निवासी श्री चौधरी धन्ना लालजी द्वारा किया गया । सन 1915 में श्री चौधरी धन्ना लालजी ने किरार जाति को संगठित करने के लिए सम्पूर्ण भारत मैं भ्रमण किया एवं सन 1920-21 में ग्राम सांडिया में नर्मदा तट पर समाज का प्रथम अधिवेशन आहूत किया । सम्मलेन की सफलता ने श्री चौधरी को आगे बढने के लिए प्रेरित किया इसी समय "यदुवंशी (किरार) " क्षत्रिय महासभा का गठन किया गया एवं लगातार 5 वर्षो तक महासभा सांडिया मैं अधिवेशन आयोजित किया गया । 1920 मे श्री चौधरी जी महासभा के सभापति बने एवं समाज की सहमती से मध्यप्रदेश के सामाजिक नियम एवं उपनियम बनवाये । सन 1920-21 में श्री चौधरी जी ने पिपरिया, होशंगाबाद में किरार हितेषी सभा का कार्यालय एवं सभी किरार बन्धुओ को इस कार्यालय के माध्यम से मदद की श्री चौधरी का मानना था की भारत वर्ष को एकता के सूत्र में बंधने के लिए सामाजिक एकता को मजबूत करना होगा । किरार क्षत्रियों के कुछ उपसमूह : ये किरार क्षत्रिय अनेक उपसमूहों में बटें हुये है जो आगरा, बांधा, हमीरपुर कोटा, जोधपुर, जैसलमेर, उदयपुर, मैनपुरी, अलिगढ़, पूना, नागपुर, भंडारा, वर्धा, अमरावती, परतवाडा, अकोला एवं विदर्भ के अन्य जिले तथा म.प्र. के हरेक जिले में मुख्यतः नर्मदा घाटी, महाकौशल, सतपुरा क्षेत्रों एवं मध्य भारत में बहुतायत से निवास करते है। इनके कुछ उपसमूहों का वर्णन निचे दिया गया है। 1. धौकर(धाकड़ ) :- रजा मंडवराव का प्रपौत्र धौकर था इसी की संतान होने से वंशज धौकर वर्तमान में अपभ्रंश नाम धाकड़ राजपूत कहलाये। 2. दुरार :- यदुवंशी राजा जसहड़ के पुत्रा दुदा के पांच पुत्र हुए वंशबृद्धि के कारण ये दुदार, दुड़ोर या डडौर भी कहलाये। 3. वरसलीया :- राजा चचकदेव का पुत्रा वर्सल था यही राजधानी किरोर का अंतिम राजा था इसी के वंशज यदुवंशी क्षत्रिय अपने को वरसलीया या बरसोलिया कहते है। 4. रत्तुवारे :- राजा वर्सल का सौतेला भाई रत्तू था इसके वंशज अपने को देवरावत देवनायत खाड़े भी कहते है।
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